सपोटरा की सुप्रसिद्ध शक्तिपीठ मां बरवासन देवी

चमत्कारिक शक्तिपीठ बरवासन देवी,बेजोड स्थापत्य कला, अद्भुत सालवाड कार्यक्रम
सपोटरा उपखण्ड मुख्यालय के उत्तर पूर्व की अरावली पहाडियों पर सात किमी दूरी पर स्थित ग्राम पंचायत अमरबाड के गांव आडाडूंगर में क्षेत्र की अराध्य बरवासन देवी पर्यटन के साथ सामाजिक सौहार्द, धार्मिक लोक परंपराओं और चमत्कारिक दैवीय शक्तिपीठ के रूप में स्थापित है।
चैत्र शुक्ल अष्टमी को मंदिर मे ंनवरात्रा के साथ अद्भुत चमत्कारिक सालवाड कार्यक्रम से दो दिवसीय विशाल मेला आयोजित किया जाता है। जिसमें राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश व दिल्ली से श्रद्धालु पूजा अर्चना के साथ मनौती मांगने आते है।

ऐतिहासिक साक्ष्य
बरवासन देवी के मंदिर में स्थित शिलालेख में शाके संवत 1834 में करौली नरेश भ्रमरपाल के पंडित बालगाविंद ने यदुवंशी शासकों का इतिहास के साथ मंदिर का जीर्णोद्धार तथा दूसरे शिलालेख में 1326 ईस्वी में दिल्ली बादशाह मुहम्मद बिन तुगलक द्वारा मंदिर स्थापना के साथ राजा हरिश्चंद, पहुडा देवी, माधव देव, विग्रह देव, हम्मीर देव तथा मंगल देव आदि शासकों के संघर्षो और तत्कालीन राजनीतिक, धार्मिक स्थितियों का उत्कीर्ण युद्ध और विजय की शक्तिपीठ देवी के रूप में मान्यता प्रदान करता है। किवदांतियों अनुसार मीणा समाज के भोंगला और भगवान के वंशजों द्वारा देवी की पूजा तथा एक बनजारे द्वारा मूर्ति स्थापना करना भी बताया जाता है।

स्थापत्य कला
बरवासन देवी मंदिर के गर्भगृह में कैलादेवी, बिरवासन, चामुण्डा व गणेशजी की मूर्ति स्थापित होने के साथ रणथम्भौर दुर्ग की ३२ खम्भों की छतरी की तर्ज पर मण्डप गृह बना हुआ है। इसके अतिरिक्त सेढ माता, महादेव जी, हनुमानजी तथा ठाकुरजी का मंदिर है। पहाड पर आमेर का चमत्कार पूर्ण हनुमानजी मंदिर है। कहावत है कि सवामणी की मनौती पर बांझ को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है।

अद्भुत सालवाड
चैत्र शुक्ल अष्टमी को मंदिर के मावडियों (पुजारियों) द्वारा युद्ध और विजय का इतिहास समेटे बरवासन देवी मंदिर पर पंच पटेलों की उपस्थिति में जयकारों व ढोल नंगाडों की गूंज पर अद्भुत सालवाड कार्यक्रम में लोहे के नुकीले त्रिशुल जीभ में घोपकर भक्तों को देवी की शक्ति का प्रदर्शन कर मंदिर की परिक्रमा की जाती है। रोंगटे खडे करने वाले दृश्य को देखकर श्रद्धालु आश्चर्य चकित होकर दंग रह जाते है। इस दौरान दोपहर करीब एक बजे होने वाले कार्यक्रम के दौरान हवा भी थम जाती है तथा श्रद्धालु पसीने में तरबतर हो जाते है। नवमी को लोकगीत व नृत्य तथा दसवीं को विशाल कुश्ती व एक क्विंटल नाल उठाने की प्रतियोगिता आयोजित होती है।